________________
दोधक छत्तीसी जिम जाणो तिम राखिज्यो,मरण जिवण तमः साथ॥२०॥ सज्जणम नड़ो माहरो, मूक्यो छै तम पास । जतन करीनै राखज्यो, मत मेलौ नीरास ॥२१॥
घाघरा कहिये किसू, कहतां आचै लाज ।
अातमा ना आधार छौ, सज्जनिया सिरताज ।।२३।। सज्जण तुम झू वातड़ी, कीधी छै दोय च्यार । ते संभारी जीव सू, एहिज मुझ आधार ॥२३॥
जे सूमननी प्रीतड़ी, ते सज्जण परदेश ।
हियड़ा कांई फाटै नहीं, जीवी कहा करेस ॥२४॥ 'हियड़ा भीतरी तूं वसइ, अवर न जाणे सार । कै मन जाणे माहरो, के जाणे करतार ॥२५॥
सूतां सपनां में मिले, जो जागू तो जाय ।
चित्त वसतां सज्जणां, इण परि रयण विहाय ॥२६॥ सैणां साथै प्रीतड़ी, कीधी सुख नै काज । सुख सपना ज्यू वह गयौ, दुख लीधौ तंइ काज ॥२७॥
रे चतुरंगी चोरड़ी, तैं मन लींधौ चोरि ।
राख्यो आपण वस करी, वांध्यौ गुणनी डोरि ॥२८॥ वीसरियां न वीसरइ, चीतारियां दहदंति । सज्जण हियडै बसि रह्यो, सुपनै आय मिलंति ॥२६॥
सज्जण सेती गोठड़ी, जो मेले करतार । (तो)काई विछोही पाड़ियौ, काई दुख दियौ अपार॥३०॥ .