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________________ AM दोधक-छत्तीसी जिण दिन सजण बीछड्या, चाल्या सीख करेह । नयणे पावस ऊलस्यौ, झिरमिर नीर करेह ॥१॥ सजण चल्या विदेसड़े, ऊमा मेल्हि निरास । हियड़ा में ते दिन थकी, मात्र नाहीं सास ॥२॥ जीव थकी वाल्हा हता, सजनिया ससनेह । आडी झुंय दीधी घणी, नयण न दीसै तेह ॥३॥ खावी पीवों खेलवौ, काइ न गमई मुझ । हियड़ा मांही रात दिन, ध्यान धरू इक तुज्क ॥४॥ सयणां सेती प्रीतड़ी, कीधी घणे सनेह । दैव विछोहो पाड़ियो, पूरी न पड़ी तेह ॥५॥ सयणां सेती जीमतौ, संतो पिण सैण । कहियै सैण न वीसरइ, ध्यान धलं दिन रैण ॥६॥ सुणि सजण तुझ नै कहूं, मुझ मन बीसारेह । एक बार इक बरस मंइ, हित सू चीतारेह ॥७॥ - थोड़ा बोला पण सहा, नाणे मन में रीस । एहा सजण तो मिले, जो तू जगदीस ॥८॥ पंजर छइ मुझ पाखती, जीव तुमारे पास । राति दिवस दोलौ भमै, (ज्यू) चंदो भमै अकास ॥६॥
SR No.010382
Book TitleJinaharsh Granthavali
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAgarchand Nahta
PublisherSadul Rajasthani Research Institute Bikaner
Publication Year1962
Total Pages607
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size18 MB
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