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उपदेश छत्तीसी
वीरोचन तन तैं छुडाय दीयो विप्र सुत, दांन तै वढे हैं जिनहरख सनेह रे ||१७||
अथ सील महिमा कथन सवइया ३१ बैट को करईया महाजन को मरईया उपशम को हरईया क्रोध भयो ही रहतु है ।
तप को गमईया जांगे खांग को समईया नही, मौर ज्यु समईया श्रम खेध मै सहेतु हैं ।
तुष्ट को दमइया रंग रास को रमईया सब, नागर न मैया भया स्वईच्छा मैं तु हैं ।
सो दुराचारी मारी नारद लह है मोख, सील तैं सलिल जिनहरख कहते हैं || १८ ||
तप कथन सवइया ३१
सु दिढपहारी चोर महापातिकी अघोर, च्यार हत्या कीनी जोर साहुकार नंद जू ।
अर्जुन मालागार मोगर हथ्यार ग्रहि, पट नर नारि एक करति निकंद ज् ।
सौ महापापी दोउं तप तें तरे है सोउ, सेवै सुरनर हरकेसी कु आणंद जूं ।
विसनकुमर जिनहरख जोयण लाख, रूप कियौ तपहुं तै चाढ्यौ नाम चंद जूं |१६|