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उपदेश छत्तीसी कहुं न वेसास ताहि आस पास धन नास,
हास करै डरै सब कोई वाके सैन ज्यु। चोर सो कहावै भावै कुल कलंक लावै, चावै अपजस पावै पाप भरै नैन जू ।
कोउ न प्रतीत धरइ पातिक सुजाइ अरै, कहै जिनहरख श्रवण सुंणि वैन जू ॥१३॥
अथ मैथुन कथन सवइया ३१ कामनी रुचि भोग हिलि मिलि कै संयोग, मानै सुख सब लोक नाम लेवै ताक जू ।
तासू लागि रहै मता बंध है करम सत्ता,
परभव दुख मानू फल है विपाक जू । आप सु कहु न बूझै करम जाल में अरूम, विषयन में अमूझै सूझै न वेपाक जू ।
कहै जिनहरख न काम तै बढे है मान, व्रत भंग कीधइ परै ठोर ठोर धाक जू ॥१४॥
अथ परिग्रह कथन सवइया ३१ परिग्रह छोरि देहु सुगुरू की सीख लेहु, बंध मै परै है काहै रहै निरवंध रे ।
परिग्रह भीर पर्यो लोह जंजीरन जर्यो, निकसि सकै न अर्यो तूं तो भयो अंध रे ।