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वीशी करि न सकु हुं ताहरी, सेवा' भगति न कांइ ।।सु.॥ कोइ क दिन मिलिवा तणी, दीसइ छइ अंतराइ ।सु.।।। दूरि थकी पिणि आपणा सेवक चीतारेह । सु. । कुंझाझी लालब चांह ज्यु, मू नाम वीसारेह ।सु. ।६। वा. प्रीत पतंगा रंग ज्यु, मत करिज्यो जिनराज ।सु.। देखण जिनहरपइ हीयउ, मेलउ दे महाराज |सु.।।७। वा.।
सुजात-जिन-स्तवन [ढाल.-श्रावक लिखमी हो खरचीयइ ।ए।] मनमोहन महिमा निलउ, गुणसायर गंभीर रे लाल । मय भंजण भगवंत जी, क्रोध दवानल नीर रे लाल ।१। समता रस संपूरीयो, ममता नहीं लवलेस रे लाल । दमता इंद्री आतमा, नमता इंद्र नरेस रे लाल ॥२ म.॥ गति प्रागति सहु जीवनी, जाणइ केवल धार रे लाल | सा. मन संदेह निवारता,विहरइ उग्र विहार रे लाल ॥३॥म. । भूख तृषा सहु वीसरह, सुणतां सरस वखाण रे लाल । वयर विरोध न सांभरह करतां प्राण प्रमाण रे लाल 181 बदन कमल जिम विकसितउ, देखइ ते सुकयत्य रे लाल । भेटइ उलट आणिनई, धन २ ते मणिमत्थ रे लाल ।। १ तिहां किरिण आइ । २ उलसित थायइ प्राण रे । ३ धन धन्न । ४ निति ऊलसतइ मन्न रे ।
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