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वीशी
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रंग विदरंग न हुवइ कदे जी,
अधिक अधिकी सदा दीठ ॥६सा.॥ - राजि पुखलावती हुँ इहां जी, भेटीयइ किण परि पाव ।
कहइ' जिनह म वीसारिज्यो जी, अउहीज' लाख पसाव ॥७सा.।।
युगमंधर-जिन स्तवन [ ढाल-सहीया सुरताण लाडउ आवइलउ, एहनी ] प्राण सनेही जुगमंधर सामी, वीनती सुणउ प्रणमुसिरनामीहो
मुझ हीयडउ हेजइ गहगहीयउ,
चरण कमल भेटण ऊमाहीयउ हो ॥१प्रा.॥ भाखर भीति गिणइ नही काइ, आवइ तारइ पासि सदाइ हो ।
मनडउ जाणइ जाइ मिलीजइ,
दोइ कर जोड़ी सेवा कीजइ हो ॥२प्रा.।। तु साहिब हुँ सेवक तोरउ, वाल्हेसर तुप्रीतम मोरउ हो ।
'नवली प्रीति प्रभु सु लागी,
रागी सुमत थाज्यो नीरागी हो ॥३प्रा.।। १ प्रभु । २ एतलइ । ३ मिलिवा मुझ हीयडउ गहगहीयउ । ४ प्रीति परम गुरु तुम सु लागी।