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________________ वीशी विशाल-जिन-स्तवन [ ढाल-ग्राज माता जोगिणि नइ चालउ जोवा जईयई ] सारद चंद्र बदन अमृतनउ, सदन अनोपम सोहइ । नयन कमल देखी अणीयाला, सुरनरना मनमोहइ रे ॥१॥ आज म्हारा साहिवनइ चालउ जोवा जईयइ । जेइनइ देवी हीयडउ हरपइ, निरपइ चित्त चकोरा । घन गजोल सांमली बाणो, नाचइ मन जिम मोरा रे ॥२॥ जेहनउ दरसण छइ अति दोहिलउ, देखेवउ प्राणीनइ । पूरण पुण्य संयोगइ लहीयइ,मिलियइ हित आणीनइ रे ३। प्रभुसुसूधी मोह विलूधी, धर्म राग रंगाणी । चोलतणी परि रंग न जायइ, सातधात भेदाणी रे ॥५॥ साहिब म्हारउ चतुर सनेही, रूडउ नइ रलीयामणउ । नयणांथी अलगउ नवि कीजइ, रसीयउ रंग रसालउ रे ।। श्रीविसाल दसमउ वइरागी, विहरमाण चडभागी । कहइ जिनहरष सुथिर लयलागी, पुण्य दसा हिब जागी रे ६ वज्रधर जिन-स्तवन ढाल-गोकल गामई गादरइजो महीडउ वेवण गईथीजो । एदेशी।] श्रीवज्रधर गुणरागी जो, सुणि साहिब सोभागी जो । तुझ मइ क्रोध न लहीयइ जो, समता सागर कहीयइ जो।१।
SR No.010382
Book TitleJinaharsh Granthavali
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAgarchand Nahta
PublisherSadul Rajasthani Research Institute Bikaner
Publication Year1962
Total Pages607
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size18 MB
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