SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 113
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ वीशी ४५ , संसय सहुना दूर टलइ । मिथ्यात्वी मन पिणि परघलड् ॥ प्रभुजी विचरइ जिणि २ देस । न करइ ईति तिहां परवेस ॥२॥ महिमा मोटर जिणवर तणउ। दीपावह जिण सासण घण।। जिहां एहबउ जिन सासनधणी। न्यायइ बाधा कीरति घणि३। कंचण चरणी प्रभुजीनी काय । लाप चउरासी पूरव आय ॥ जउरे म्हाराप्रभुजी नउ देपूरूपातउमन माहि बाधइ हरपअनूप४ घउ नइ रे दरसण मुझनइ सामि । लय लाई राउ ताहरइ नाम। तुतउ रे करुणा सागर सही । मुझनइ तारउ बांहई ग्रही ।५। ध्यान धरूंछुताहरउ हीयइ । हीयउ ठरइ परतपि देपीयइ । विरुद परउ करि घउ सिवराजाकहइ जिनहरप वधइ जिमलाज६ सूरप्रभ-जिन-स्तवन [ ढाल- म्हारी लाल नणदरा वीर हो रसिया। वे गोरीना नाहलीया ।। एदेशी ॥] तु तउ सहु गुण रसनउ जाण हो रसीया, तुसमता रस पूरीयउ । तुझ नामइ लील विलास हो रसिया, सुभ तरु वीज अंकुरीयउ ॥१॥ म्हारा मनना मान्या मीत हो रसीया, सुणि सेवकना साहिबीया ॥ आंकणी ॥
SR No.010382
Book TitleJinaharsh Granthavali
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAgarchand Nahta
PublisherSadul Rajasthani Research Institute Bikaner
Publication Year1962
Total Pages607
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size18 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy