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________________ वीशी ४१ हुं तउ भव दुप माहि पीडाणउ कि । वा। . चउपट चिहुं गति मांहि भीडाणउ रे कि ॥२॥ -वली मइ नारिकिना दुष पाम्यां कि । वा । मुप मांहि तातां तरुयां नाम्यां कि । वा। अगनई धग धगती पूतलीयां कि । वा। मुजनइ तेहनी संगति मिलीयां कि ॥३॥ मुज नइ पावक माहि पचाव्यउ कि । वा। नदी वैतरणी मांहि तराव्यउ कि । वा। देवे सूलारोपण कीधउ कि । वा। मुझनइ लोहयंत्र मांहि लेई दीधउ कि ॥४॥ वली हुँ तिरयंचनी गति पायउ कि । वा।। परवसि घणु घणु दुप पायउ कि । वा। तिहां तउ नाक फाड्यउ कान काप्यां कि ।वा । बहु परि भूप त्रिपा दुख व्याप्यां कि ॥शा वली मई नरगतिना दुख वेश्यां कि । वा । तिहां तउ सात विसन मई सेव्यां कि । वा। परनी लुली लुली सेवा कीधी कि । वा। तउ ही आस्या कांई न सीधी कि ।। ६ वा ।। - करमई किंकर सुरपद पाम्यौ कि । वा। तिहां तउ जोरई मुजनइ दाम्यउ कि । वा।
SR No.010382
Book TitleJinaharsh Granthavali
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAgarchand Nahta
PublisherSadul Rajasthani Research Institute Bikaner
Publication Year1962
Total Pages607
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size18 MB
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