________________
जिनहप-प्रन्थावली नर-नारी वैमानिका रे, काई ईसान कूणइ त्रिगण एहरे ।आ.।
बइसइ प्रभुजी नई आगलहरे,
काइ आणी आणी परम सनेह रे ॥४॥ धरम धजा लहकइ मली, काई सहस योजन परमाण रे ।आ.।
धरमचक्र प्रागलि चलइ रे,
काइ धरम चक्र सुजाण रे ॥शा धरम देसण जिनवर दीयइ रे, काई मीठी मीठी अमीय समाण रे ।आ.।
सुणतां रे तनमन ऊलसइ रे, कांई कहइ जिनहरख सुजाण रे ॥६॥
सुजात-जिन स्तवन ढाल- गरवउ कउण नइ कोराव्यउ कि नंदजीरे लाल । एदेशी ।।
आपणा सेवकनइ, सुख दीजइ कि, वारी म्हारा लाल । काइक करुणा मुझस्यु कीजइ कि वारि।
तुमे छउ माहरा अंतरजामी कि । वा ।। .
पमिज्यो प्रभुजी माहरी खामी रे कि ॥१॥ . हुंतर सेवक छु प्रभु तोरउ कि । वा।। वली वली तुमउइ करू निहोरउ कि । वा ! -