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जिन सिद्धान्त
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आताप, स्थावर, सूक्ष्म, अपयोप्ति और साधारण । इन ३१ प्रकृतियों का बंध और उदय दोनों ही साथ विच्छिन्न होता है। __प्रश्न--पहले बंध, बाद में उदय विच्छेद होने वाली कर्म प्रकृतियों कौनसी हैं ? ___ उत्तर--ज्ञानावरणी ५, दर्शनावरणी १, वेदनीय २, संज्वलन लोभ, स्त्रीवेद, नपुंसक वेद, अरति, शोक, नरकायु, तिर्यंचायु, मनुष्य-आयु, नरकगति, तिथंचगति,
चेन्द्रिय जाति, औदारिक, तेजस, कार्माण शरीर, संस्थान ६, औदारिक अंगोपांग, संहनन ६, वर्णादि ४, नरकगत्यानुपूर्वी, तियंचगत्यानुपूर्वी, अगुरुलघु आदि ४, उद्योत, विहायोगति २, बस, बादर, पर्याप्त, प्रत्येकशरीर, स्थिर, अस्थिर, शुभ, अशुभ, सुभग, दुर्भग, सुस्वर, दुःस्वर, आदेय, अनादेय, यशःकीर्ति, निर्माण, तीर्थंकर, नीचगोत्र, उच्चगोत्र, अतंराय ५, इन ८१ प्रकृतियों का पहले बंध नष्ट होता है बाद में उदय नष्ट होता है।
प्रश्न-परोदय से बंधनेवाली प्रकृतियों का क्या नाम है ? ___ उत्तर–तीर्थकर, नरकायु, देवश्रायु, नरकगति, देवगति, चैक्रियक शरीर, वैक्रियक अंगोपांग, नरक गत्यानुपूर्वी, देवगत्यानुपूर्वी, अहारक शरीर, अहारक