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जिन सिद्धान्त ] संज्ञा है । जो महान स्थिति अनुभागों में अवस्थित कर कर्म स्कन्ध अपकर्षण करके फल देने वाले किये जाते हैं उन कर्म स्कन्धों की 'उदीरणा' यह संज्ञा है, क्योंकि अपक्व कर्मस्कन्ध के पाचन करने को उदीरणा कहा गया है।
प्रश्न-उपशम, निधत्त और निकांचित में क्या अन्तर है ?
उत्तर-जो कर्म उदय में न दिया जा सके वह उपशम, जो संक्रमण और उदय दोनों में ही न दिया जा सके वह निधत्त और जो अपकर्षण, उत्कर्पण, संक्रमण तथा उदय इन चारों में ही न दिया जा सके वह निकांचित है।
प्रश्न--क्षय किसे कहते हैं ? उत्तर--कर्म की अत्यन्त निवृत्ति को क्षय कहते हैं। प्रश्न--क्षयोपशम किसे कहते हैं ?
उचर--को भाव, कर्म के उदय अनुदय कर होवे उन्हें क्षयोपशम भाव कहते हैं । क्षयोपशम भाव के बारे में दो मत हैं (१) वर्तमान निषेक में सर्वधाति स्पर्धकों का उदयाभावी क्षय तथा देशघाति स्पर्धको का उदय और आगामी काल में उदय आने वाले निपेकों का सदवस्था रूप उपशम ऐसी सर्म की अवस्था को क्षयोपशम कहते हैं।