SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 183
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ जिन सिद्धान्त ] श्रद्ध नाराच संहनन, कीलीतसंहनन, अप्रशस्तविहायोगति, स्त्री वेद, नीचगोत्र, तिर्यंचगति, तियंचगत्यानुपूर्वी, तिर्यचत्रायु, उद्योत मिलकर २५ प्रकृतियों को घटाने पर शेष रही ७६, परन्तु इस गुणस्थान में किसी भी श्रायु कर्म का बंध नहीं होता है, इसलिये ७६ प्रकृति में से मनुष्य श्रायु और देव श्रायु इन दो के बढाने पर ७४ प्रकृतियों का बंध होता है । नरक आयु की पहले गुणस्थान में और तिर्यंच आयु की दूसरे गुणस्थान में व्युच्छित्ति हो चुकी है। १७५ प्रश्न- मिश्र गुणस्थान में कितनी प्रकृतियों का उदय होता है ? उत्तर - दूसरे गुणस्थान में १११ प्रकृतियों का उदय होता है, उनमें से व्युच्छिन्न अनन्तानुबंधी क्रोध मान माया लोभ, एकेन्द्रिय आदि चार जाति, एक स्थावर मिलकर & प्रकृति के घटाने पर शेप १०२ रही उनमें से नरकगत्यानुपूर्वी के बिना तीन अनुपूर्वी के घटाने पर शेष ६६ प्रकृति रही और एक सम्यक् मिथ्याच्च प्रकृति का उदय यहाँ या मिला इस कारण इस गुणस्थान में १०० प्रकृति का बंध होता है । प्रश्न- मिश्र गुणस्थान में कितनी प्रकृतियों की सत्ता रहती है ?
SR No.010381
Book TitleJina Siddhant
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMulshankar Desai
PublisherMulshankar Desai
Publication Year1956
Total Pages203
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size3 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy