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[ जिन सिद्धान्त
ही ज्ञाता दृष्टा है । यदि सर्वज्ञ भ्रत और भविष्य की व्यक्त रूप पर्याय जानता है तो हमारी प्रथम की तथा शेष की पर्याय भी जानना चाहिए। वह प्रथम पर्याय जाने तब उसके पहले हम क्या थे और शेष की पर्याय जाने तत्र क्या द्रव्य का नाश हो गया ? परन्तु ऐसा वस्तु का स्वरूप नहीं है । इसलिये सिद्ध होता है कि सर्वज्ञ के ज्ञान मैं भूत भविष्य का भेद नहीं है।
इति 'जिन सिद्धान्त" शास्त्र विषै जीव भाव, तथा निमित्त अधिकार * समाप्त