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जिन सिद्धान्त ]
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प्रश्न- ध्रुव तथा निरंतर बंध कौनसी कर्म प्रकृति
उत्तर - ज्ञानावरण ५, दर्शनावरण ६, मित्यात्व १, कपाय १६, भय, जुगुप्सा, तेजस, कार्माण शरीर, वण', गंध, रस, स्पर्श, अगुरुलघु, उपघात, निर्माण, अंतराय ५, ये ४७ ध्रुव प्रकृतियाँ हैं । ये ४७ ध्रुव प्रकृतियों तथा तीर्थंकर, अहारक शरीर, अकारक अंगोपांग, आयु ४ ये मिलकर ५४ प्रकृतियॉ निरन्तर बंधती हैं ।
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शंका: -- निरंतर बंध और ध्रुप-बंध में क्या भेद है ? समाधान: -- जिस प्रकृति का प्रत्यय जिस किसी भी जीव में अनादि एवं ध्रुव भाव से पाया जाता है और जिस प्रकृति का प्रत्यय नियम से सादि एवं व तथा श्रन्तर्मुहूर्त काल तक अवस्थित रहने वाला है, वह निरतर बंध प्रकृति है ।
प्रश्न-सांतर बंध प्रकृतियाँ कोनती हैं ?
उत्तर -- जिन जिन प्रकृतियों का काल तब मे बंध-विच्छेद संभव है ये सांतर बंध प्रकृति है । असाता वेदनीय, स्त्री वेद, नपुंसक बेटे, रति, शोक, नरकगति, चारजाति, अधस्तन पांच संस्थान, पांच संहनन. नरकगत्यानुपूर्वी आतान, उद्योत यशस्त विहायोगति, सावर, सूक्ष्म,
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