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पोसले:
परिशिष्ट
(अपवेलसतम)
धवला टीका मन्दिन पटनागम को जीवम्यान नामक सत्यमपणा की प्रथम पुस्तक हमारे हाथों में है। इसमें आए 'मन' 'अपदेन रोनो मन हमारी दृष्टि में है। ये ही गन्द ममयमार की १५वी गापा अर्थ की दृष्टि से विवाद के विषय बने हए है और इनके स्पष्टीकरण के प्रयत्न हमने भी अपने 'भगदेम. मनममन' प्रमग में किए है। अब मन के मम्बन्ध में इतना विष है कि -
१. पटाडागम मानवे मूत्र में मनपरूबणा' पद का और धवला में 'मनाणियोग' पद का प्रयोग मिलता है । इमी पुग्नक के हमी पृष्ठ १५५ पर एक टिप्पण भी मिलता है जो नया गज वा. मूल का कुछ है 'मन्च पभिचारि' इत्यादि । ऐम ही पदमागम के आठवे मूत्र में 'मन' पर है। यथा- मनपावणदाए । इमो विवरण में मन मन्वमित्यर्ष ' भी मिलता है। इमी पुस्तक में पृ० १५८ पर कही में उन एक गापा भी मिलती है। यथा - 'अन्यित पुणमन अयिनम्म य नहब परिमाण ।" हम गाषा अर्थ में लिया है कि-अम्तित्व का प्रतिपादन करने वाली प्रपणा की मप्रपणा कहनंहै। यहां भी 'मन' गम दृष्टव्य है।
उक्न पूरे प्रमग में दो नय्य मामनं आने । पहिला यह कि सभी जगह 'सन' का प्रयोग '
मन के मन' नन्द के लिए हवा है। यह बात भी किमी मे छिपी नही कि 'मनपम्पणा' में उनी 'मन् का वर्णन है जिम तत्वार्य मूत्रकार ने 'मन्मभ्याक्षेत्र' सत्र में दर्माया है। यानी जिम ममन में 'मन्' कहा वही प्राकृत में 'मन' कहा गया है। अन मन का मन् म्बभावन फलिन है। दूमरा नथ्य यह कि 'मन् मन्द मन्द के भाव में है, अन मन, मन, मत्व, मत ये सभी एकार्यवाची मिड होते है। पुम्नक के अन्त में जो 'सतमुत्त-विवरण सम्मत' बाया है उनमें भी 'मन' का प्रयोग मन् के लिए ही है।
'संत' पद के प्रयोग 'सत्' अर्ष में अन्यत्र भी उपलब्ध है । यथा-- -कम्ममहाहिवारे-नय... ५१२१ प्रस्तावना .प्र.पु.प.