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परनेटो
यदि उक्त मन्त्र को सर्वगुण सम्पन्न रखते हुए. एकासार उच्चारण करना हो मी ''मात्र कहने में निकाह हो जाता है. क्योंक ''को मात्रा में बोजासर माना गया है। जिस प्रकार छोटे में बीजमल्प होने की मामर्ष है. उसी प्रकार में पूरे नमोकार मन्त्र की मामय है. पाकि पानी परमेष्ठी नपिन है। नाहि..
'बरहना अमरोग आइग्यिा मह उपमनाया मुनिको पदमातार निप्पणी ॐागे पपग्मट्ठी ॥"
अगहन, अमगर (मिड), आचार्य, उपाध्याय और मुनि, म पायो परमप्ठियों के प्रथम अमरममगन है. और यह ''परमेष्ठी वापर है। नवाहि
अगहन्न, का अ, अमगेर (मिर) का अ, आचार्य का उपाध्याय का 3 और मुनि काम् ।
अ+ आ (अक मवणे दोष) + आ आ आ (... .. ..) + आ+3 ओ (आद्गुण) ओम् ओम् - अनुम्बाग्युक हप ॐ
पर परमठियों के आरक्ष में निष्पन्न 'को महमा म प्रकार निदिष्ट है
कार बिन्दुमयुक्त नित्य ध्यान योगिन. । कामद मानद व कागय नमो नमः ॥
बिन्दु महिन प्रकार का योगीजन नित्य ध्यान करते है। यह सकार इच्छिन पदार्प-दाना और मांसप्रदाता है। उस कार को नमस्कार हो।
उपनिषदकार के मन्दी में-कार परमात्मप्रतीके दामकाव्यमाना मनि मन्तनुपान्-छादोग्योपनिषद् नोकर भाप्य ।' १,। इसे 'प्रणव' नाव में भी सम्बोधित किया जाता है. क्योंकि यह कभी भी जी नही होता। इनमें प्रतिक्षण नबीनना का संचार होता है और यह प्राणी को पवित्र और अनुष्ट करना है । 'प्राणान् सर्वान् परमात्मनिषनामयतीत्येतस्मात् प्रणवः ।'
ऊपर कहे गये नमोकार मन्त्र की मंगलस्पता मम्म के माष पाजाने बाने माहात्म्य से निर्विवाद सिद्ध होती है। मानमो में अन्य बनेको मन्त्रों को भी मंचनरुपता प्राप्त है, पर मुखतः दोही प्रसंग ऐसे गाते हैं, जिनमें अनशन