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'जम्म कमनि पहेमा पदेनमेनं तु ननदो गादं । मुग्ण जाण तमत्व......""| प्रवचनमार २/५२ ॥ 'उत्पाद-सपनोव्यापुन मन्। मायलमणम् ॥'. मवाळूत्र ३
५. यदि येन केन प्रकारेण आम्मा का अग्निब मिड करने के लिए उमे एक प्रवेणी (कानवन्) भी माना जायेगा नो आत्मा को मिलायम्पा में परमाणु अवगाहमात्र आकाण प्रदेश को अवगाह करके ही रहना परंगा और जैसा कि मिसाल है. मिहामार्ग कणा बग्मती मिडा' धनुषा क्षेत्र परिमाण आकाण को घेरकर विगजमान है का व्यापान होगा।
६. आम्मा में प्रणव गुण नहीं बनेगा. जबकि प्रदेणवगुण का होना अनिवार्य है 'प्रदेणवन्य न माकाकाशप्रणांग्माणप्रण एक आम्मा भनि।' -- अर्थात एक. बान्मा नाकाकाण जिनने (अमनपान) प्रण वाना होना है।'
२० भा• गि.40013 .. प्रदेणन्य गति को मिरिनी होगी, कि आग्मा के इम मकिन की अनिवार्यना.
'आममार महरण-विनगणनभितकिनिनग्मणगैरपरिमाणावरिपतनांकाकाणम्मितान्मावयवत्वलक्षणानियनपणन्याल ।'
ममयमार कमण म्यादादाधिकार/२६३ टीका ८. प्रवचनमार में नियंकप्रचय' और 'म्य-प्रय नामक दो प्रचय बनला है और कहा है कि प्रदेणी के ममूह का नाम नियंकप्रनय है। वह 'निर्यकप्रनय काल के अतिरिका मभी दया और मुनान्मतव्य में भी है। इमस मुडनय में भी गुड आन्मा बहुपदणी ही ठहरना है। 'प्ररंगयो हि निर्यकाचयः' --अमनचन्दाचार्य ।
सप प्रगप्रयलमणाम्पियंकायों यथा मुक्नामो निम्नषा कानं विहाय ग्बकीय-म्बकीयप्रदेणमध्यानमाण गंगद्रव्याणा म मंभवनीति नियंचयो व्याख्याना।
द्रव्यों की पहिचान के लिए आगम में पृथक-पृषक म्प में द्रव्यों के गुणधों को गिनाया गया है, मभी द्रव्यों के अपने-अपने गुणधर्म नियत है । कुछ माधारण है और कुछ विष । जहा माधारणगुण बस्नुके अम्नित्यादि की इंगित करते है वहा विशेषगुण एक द्रव्य को अन्य दयों में पृथकना बनाने है। अस्तित्व, वस्तुन्व, द्रव्यत्व, प्रमपन्य, अगुरुमधुन्च, प्रदेणत्व, चेतनत्व ये जीव