________________
माचार्य न की प्राकृत लोए या लोगे
पटनागम मगनारगन-मूलमा नमोकार में 'लोए अगुण रूप में निना गया जो बाबालपस में बिना किमी मानिकपडाम्पर बना हमा। पिणन ने बप निना है प्राकृत में निम्न उदाहरण मिलन है न' के म्थान में 'ए' बोला जाना है. 'लोके' को 'लोए कहने है। पंग १७६ ।
ग ही 'जन गोग्मनी की प्राचीनतम हम्न-पियो अ आ मे पहले और मभी बगे के बाद अर्थात् इमक बीच में 'य' निमानी !' .
___योतु' म्प जन महागष्ट्री का है और बतु गाग्मनी का। पिणन ने निना है भाग्गनी' में 'वन को मामान्य क्रिया का प कभी 'बोनु नही बोला जाना । किन्नु मदा 'वनु हो रहना है। पंग ५७०
उक पूरी म्पिति के प्रकाश में ऐमारी प्रतीत होता है कि 'जन गोग्मनी' में अर्धमागधी. जैन महागन्दी और शोग्मनी इन नोना प्राकृनों के प्रयोग हो रहे है, अन भागो में आप (उन नियम में मधिम) मभीरूप ठीक है। यदि हम किमी एक को ठीक और अन्य का गबन मान कर बले सब हमे पूर आगम और कुन्दकुन्द के सभी प्रन्या के गम्दी को (भाषाष्टि में) बदलना पडेगा यानी हमारी दृष्टि में मभी गलन हांग जंमा कि हम इष्ट नहीं और न जैन गौग्मनी प्राकृत को ही मा इष्ट हागा। मी गाद में यदि गभी जगह नाग्मनी के नियमानुसार 'द ग्ना इष्ट होगा नो
पदम हो:या रम हवा मगन क ग्थान पर भी 'हदि पहना होगा जमा किचलन जन के किसी भी मम्प्रदाय में नही है आदि । पाठक विचारे ।