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जैन पदसंग्रहलेहु, सीख सुनि पानी रे ! ॥ १३॥ सात-विसन सेवन हठी, सुनि पानी रे ! अधम अंजना चोर, सीख सुनि प्रानी रे! सरधा करते मंत्रकी, सुनि पानी रे! सीझी विद्या जोर, सीख सुनि पानी रे! ॥१४॥ जीवक सेठ समोधियो, सुनि पानी रे! पापाचारी खान, सीख सुनि प्रानी रे! मंत्र प्रतापैं पाइयो, सुनि पानी रे! सुंदर सुरग विमान, सीख सुनि पानी रे!॥१५॥आगैं सीझे सीझि है, सुनि प्रानी रे! अब सीझैं निरधार, सीख सुनि पानी रे! तिनके नाम बखानतें, सुनि पानी रे! कोई न पावै पार, सीख सुनि पानी रे!॥१६॥ बैठत चिंतै सोवतें, सुनि पानी रे! आदि अंतलौं धीर, सीख सुनि प्रानी रे ! इस अपराजित मंत्रको, सुनि प्रानी रे! मति बिसरै हो! वीर, सीख सुनि प्रानी रे! ॥१७॥ सकल लोक सब कालमें, सुनि पानी रे! सरवागममें सार, सीख सुनि पानी रे! भूधर कबहुं न भूलि है, सुनि पानी रे! मंत्रराज मन धार, सीख सुनि प्रानी,रे!॥ १८॥ '
१जीवंधरने।