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________________ तृतीयभाग। सीख सुनि प्रानी रे! ॥ ८॥ नाग नागिनी जलत हैं, सुनि प्रानी रे! देखे पासजिनिंद, सीख सुनि प्रानी रे! मंत्र देत तव ही भये, सुनि प्रानी रे! परमावति धरनेंद्र, सीख सुनि पानी रे! ॥ ९॥ चहलेमें हथिनी फँसी, सुनि पानी रे! खग कीनों उपगार, सीख सुनि पानी रे ! भव लहिकै सीता भई, सुनि पानी रे ! परम सती संसार, सीख सुनि प्रानी रे ! ॥ १० ॥ जल मांगै शूली चढ्यो, सुनि प्रानी रे ! चोर कंठगतप्रान, सीख सुनि पानी रे! मंत्र सिखायो सेठने, सुनि प्रानी रे! लह्यो सुरग सुखथान, सीख सुनि प्रानी रे ! ॥ ११ ॥ चंपापुरमें ग्वालिया, सुनि प्रानी रे! घोखै मंत्र महान, सीख सुनि पानी रे! सेठ सुदर्शन अवतर्यो, सुनि प्रानी रे ! पहले भव निरवान, सीख सुनि पानी रे ! ॥ १२ ॥ मंत्र महातमकी कथा, सुनि प्रानी रे! नामसूचना एह, सीख सुनि प्रानी रे! श्रीपुन्यास्रवग्रंथमें, सुनि पानी रे! तारे सो सुनि १ कीचड़में । २ विद्याधरने। ५ भाग ३
SR No.010377
Book TitleJainpad Sangraha 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJain Granth Ratnakar Karyalaya Mumbai
PublisherJain Granth Ratnakar Karyalay
Publication Year
Total Pages77
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size3 MB
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