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तृतीयभाग |
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तुम अजितनाथ अजीत जीते, अष्टकर्म महावली । यह जानकर तुम शरण आयो, कृपा कीजे नाथ जी ॥ तुम चन्द्रवदन सुचन्द्रलक्षण, चन्द्रपुरिपरमेशजू । महासेननन्दन जगतवंदन, चन्द्रनाथ जिनेशजू ॥ २ ॥ तुम वालबोधविवेकसागर, भव्यकमलप्रकाशनो । श्रीनेमिनाथ पवित्र दिनकर, पापतिमिर विनाशनो ॥ तुम तजी राजुल राजकन्या, कामसेन्या वश करी | चारित्ररथ चढ़ि भये दूलह, जाय शिवसुन्दरि वरी ॥ ३ ॥ इन्द्रादि जन्मस्थान जि - नके, करन कनकाचल चढ़े । गंधर्व देवन सुयश गाये, अपसरा मंगल पड़े || इहि विधि सुरासुर निज नियोगी, सकल सेवाविधि ठही । ते पार्श्व प्रभु मो आस पूरो, चरनसेवक हों सही ॥ ४ ॥ तुम ज्ञान रवि अज्ञानतमहर, सेवकन सुख देत हो । मम कुमतिहारन सुमतिकारन, दुरित सव हर लेत हो । तुम मोक्षदाता कर्मघाता, दीन जानि दया करो | सिद्धार्थ - नन्दन जगतवन्दन, महावीर जिनेश्वरो ॥ ५ ॥