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नृतीयभाग।
१७ • ६७. कालिंगडा। ("गर्गव जुलाहा ताना कौन बनेगा" इस चालमे।) .. 'चरखा चलता नाही, चरखा हुआ पुराना । टेक ॥ पग खूटे दो हालन लागे, उर मदरा खखराना । छीदी हुई पांखड़ी पांसू, फिरै नहीं मनमाना ॥ चरखा० ॥१॥ रसना तकलीने वल खाया, सो अव कैसे खूटै ॥ शवद सूत सूधा नहिं निकसै; घड़ी घड़ी पल टूटै ॥ चरखा० ॥२॥ आयु मालका नहीं भरोसा, अंग चलाचल सारे ! रोज इलाज मरम्मत चाहै, वैद बाढ़ही हारे ॥ चरखा० ॥३॥ नया चरखला रंगा चंगा, मवका चित्त चुरावै । पलटा वरन गये गुन अगले, अव देखें नहिं भावै ॥ चरखा० ॥४॥ मौटा महीं कातकर भाई !, कर अपना सुरझेरा ॥ अंत आगमें ईंधन होगा, भूधर समझ सवेरा ॥ चरखा०॥५॥
६८. आरती। आरती आदि जिनिंद तुम्हारी, नाभिकुमार कनकछविधारी ॥ आरती० ॥ टेक ॥ जुगकी