________________
जैनपदसंग्रह.
.
अडंबर, लावत भरभर कर जोरी । उड़त गुलाल निर्जरा निर्भर, दुखदायक भवथिति दोरी || सहज० ॥ २ ॥ परमानंद मृदंगादिक धुनि, विमल विरागभावधोरी । भागचंद हग-ज्ञान- चरनमय, परिनत अनुभव रँग बोरी ॥ सहज० ॥ ३ ॥
४४
८७.
सत्ता रंगभूमिमें, नटत ब्रह्म नटराय ॥ टेक ॥ रत्नत्रय आभूषणमंडित, शोभा अगम अथाय । सहज सखा निःशंकादिक गुन, अतुल समाज बदाय || सत्ता रंग० ॥ ॥ १ ॥ समता वीन मधुररस वोलै, ध्यान मृदंग बजाय । नदत निर्जरा नाद अनूपम, नूपुर संवर ल्याय | सत्ता रंग० ॥ २ ॥ लय निज-रूप- मगनता ल्यावत, नृत्य सुज्ञान कराय । समरस गीतालापन पुनि जो, दुर्लभ जगमहँ आय । || सत्ता रंग० ॥ ३ ॥ भागचन्द आपहि रीझत तहाँ, परम समाधि लगाय । तहाँ कृतकृत्य सु होत मोक्षनिधि, अतुल इनामहिं पाय || सत्ता० ॥ ४ ॥
इति श्रीभागचन्द्रपदावली समाप्ता ।