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जैनपदसंग्रह:छीजिये । कर्म कर्मफल माहिं न रावत, ज्ञान सुधारस पीजिये । प्रभुमोरी० ॥ १॥ सम्यग्दः र्शन ज्ञान चरननिधि, ताकी प्राप्ति करीजिये। मुझकारजके तुम बड़कारन, अरज दौलकी ली: जिये । प्रभु मोरी० ॥२॥
वारी हो वधाई या शुभ साजै । विश्वसेन ऐरीदेवीगृह जिनभवमंगल छाजै। वारी०॥टेक।। सव अमरेश अशेष विभवजुत, नगर नागपुर आये । नाग-दत्त सुरइन्द्रवचनतें, ऐरावत सज धाये । लखजोजन शतवदन वदनवसु रदै प्रतिसर ठहराये । सर-सर सौ-पन-वीस नलिनप्रति, पदम पचीस विराजै । वारी हो० ॥ १॥ पदमपदमप्रति अष्टोत्तरशत, ठने सुदल मनहारी । ते सब कोटि सताइसपै मुद, जुत नाचत सुरना री। नवरसगान ठान काननको, उपजावत सु. खभारी । वंकलैलावत लंकलचावत, दुतिलखि .१ न्यून नहोवे ! २ शान्तिनाथ भगवानकी माता । ३ भगवान के जन्मका उत्सव । ४ सम्पूर्ण । ५ हस्तिनापुर । ६ कुवेर । ७ दात..