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जैनपदसंग्रहकाढ्ने, किधों जगनाह यह वाँह सारी । निर. ख०॥३॥ तप्त होटकवरन वसन विन आमर. न, खरे थिर ज्यों शिखर मेरुकारी । दौलको दैन शिवधौलें जगमौल जे, तिन्हें करजोर वंदन हमारी । निरख०॥ ४॥
ध्यानपान पानि गहि नासी, वेसठ प्रकृति अरी । शेष पंचासी लाग रही हैं, ज्यों जेवरी. जरी ॥ ध्यान० ॥ टेक ॥ दुठ अँनंगमातंगभंगकर, है प्रबलंगहरी । जा पदभक्ति भक्तजन-दुख दावानल मेघझरी ।। ध्यान० ॥ १॥ नवल धवल पले सोहै कलमें, क्षुधतृषव्याधि टरी । हलत न पलक अलंक नख बढ़त न, गति नभमाहिं करी। ध्यान० ॥२॥जा विन शरन मरनजरधरधर, महा असात भरी । दौल तास पद दास होत हैं, बास मुक्तिनगरी ।। ध्यान० ॥३॥ . .१ पसारी .। २ तपाये हुए सोनेकासा रंग | ३ मेरुका। ४ मुक्तिरूपी महल ।.५ ध्यानरूपी तलवार । ६ घातियाकर्मोकी. प्रकृतियें। ७ कामदेवरूपी हंस्तीको मारनेवाले । ८ बलवान सिंह। R.मांस व रुधिर । १०शरीरमें । ११ केश।. ... . : .