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________________ जैनपदसंग्रह | २५२ । : देखे धन्य घरी, आज पावापुर महावीर || देखे • ॥ टेक ॥ गोतमखामि चंदना मेंडक, श्रेणिकसुखकर धीर ॥ देखे० ॥ १ ॥ चार ओर भवि कमल विराजें, भक्ति फूल सुख नीर । द्यानत तीरथनायक ध्यावै, मिट जावै भव भीर || देखे ० ॥ २ ॥ १२४ २५३ । 3 आतम महबूब यार, आतम महबूब || आतम● ॥ टेक ॥ देखा हमने निहार, और कुछ न खूब ॥ आतम० ॥ १ ॥ पंचिन्द्रीमाहिं रहे, पाचोंतें भिन्न । वादलमें भानु तेज, नहीं खेद खिन्नं ॥ आतम० ॥ २ ॥ तनमें है तजै नाहि, चेतनता सोय । लाल कीच बीच पस्यो, कीचसा न होय || आतमः ॥ ३ ॥ जामें हैं गुन अनन्त, गुनमें है आप । दीवेमें जोत जोतमें है दीवा व्याप ॥ आतम० ॥ ४ ॥ करमोंके पास वसै, करमोंसे दूर | कमल वारिमाहिं उसे, बारिमाहिं जूर (?) ॥ आतम० ॥ ५ ॥ सुखी दुखी होत नाहिं, सुख दुखकेमाहिं । दरपनमें धूप छाहिं, घाम शीत नाहिं ॥ आतम० ॥ ६ ॥ जगके व्योहाररूप, जगसों निरलेप | अंबर में गोद धस्यो, व्योमको न चेप | आतंम० ॥७॥ भाजनमें नीर भस्यो, थिरमें मुख पेख । द्यानत मनके विकार, टार आप देख ॥ आतम• ॥ ८ ॥ .
SR No.010375
Book TitleJainpad Sangraha 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNathuram Premi
PublisherJain Granth Ratnakar Karyalay
Publication Year1909
Total Pages253
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
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