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चतुर्थभाग ।
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प्यारे० ॥ १ ॥ उनहीके गुनको सुमरौं, उनही लखि जीय जिया रे || प्यारे० ॥ २ ॥ द्यानत जिन प्रभु नाम रयो तिन, कोटिक दान दिया रे || प्यारे० ॥ ३ ॥
२४९ ।
मोहि तारो जिन साहिब जी ॥ मोहि० ॥ टेक ॥ दास कहाऊं क्यों दुख पाऊं, मेरी ओर निहारोः ॥ मोहि० ॥ १ ॥ पटकाया प्रतिपालक खामी, सेवकको न विसारो || मोहि० ॥ २ ॥ द्यानत तारन तरन चिरद तुम, और न तारनहारो ॥ मोहि० ॥ ३ ॥ २५० ।
दास तिहारो हूं, मोहि तारो श्रीजिनराय । दास तिहारो भक्त तिहारो, तारो श्रीजिनराय ॥ दासं ॥ टेक ॥ चहुँगति दुखकी आगतै अब, लीजे भक्त बचाय ॥ दास० ॥ १ ॥ विषय कपाय ठगंनि ठग्यो; दोनोंतें देहु छुड़ाय || दास० ॥ २ ॥ द्यानत ममता : नाहरीतैं, तुम बिन कौन उपाय ॥ दास० ॥ ३ ॥
२५१ ।
गोतम स्वामीजी मोहि बानी तनक सुनाई ॥ गोतम० ॥ टेक ॥ जैसी बानी तुमने जानी, तैसी मोहि बताई ॥ गोतम० ॥ १ ॥ जा वानीतें श्रेणिक समझ्यो, क्षायक समकित पाई ॥ गोतमं० ॥ २ ॥ द्यान्रत भ्रूप अनेक तरे हैं, बानी सफल सुहाई । गोतम ० ॥ ३ ॥