________________
हजूरी पद-संग्रह। राखी प्रकृति पचासी ॥ वंदो० ॥॥ जाके दरशन ज्ञान विराजत, लहि वीरज सुखरासी।जाकों 'वंदत त्रिभुवननायक, लोकालोक-प्रकाशी। 'वंदों ॥३॥ सिद्ध शुद्ध पर-मातम राजै, अविचल-थान निवासी। धानत मन-अलि प्रभुपदपंकज, रमत रमत अघ जासी ॥ बंदों ॥४॥
(७४) मेरी वेर कहा ढील करी जी॥ मेरीवेर० ॥ टेक ॥ सुलीसों सिंहासन कीनो.सेठसुदर्शनविपतिहरी जी। मेरीवर ॥शासीतासती अगनिमें पेंठी, पावक नीर करी सगरीजी। वारिषेण पै खडग चलायो,फूलमाल कीनी सुथरीजी ।। मेरी वेर॥२॥ धन्या वापी पस्यो निकारयो, ताघर ऋद्धि अनेक भरीजी। सिरीपाल सागरतें तारयो. राजभोगकर मुकति वरीजी॥ मेरीवेर०॥ ॥ सांपकियो फूलनकी माला, सोमापर तुम दया घरीजी । द्यानत मैं कछू जांचतं नाही, कर वैरा'ग्यदशा हमरीजी ॥ मेरीबेर०॥४॥
१ धन्यकुमार । २ सोमा सतीघर