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जैनपदसागरं प्रथमभाग
७२ । राग ख्याल। : . मैं नेमिजीका बंदा मैं साहिबजीका वंदा॥ में नेमिजी० ॥ टेक । नैनचकोर दरसको तरसै; खामी पूनमचंदा ॥ मैं नेमिजीका० ॥ १॥ छहों दरबमें सार बतायो, आतम आनंदकंदा। ताको अनुभव नितप्रति करते, नासै सब दुख दंदा॥ ॥ मैंनेमिजीका० ॥२॥ देत धरम उपदेश भविक 'प्रति, इच्छा नाहिं करंदा । रागरोष मद मोह नहीं नहिं, क्रोध लोभ छलछंदा॥में नेमिजीका? ॥३॥जाकोजस कहि सकैन क्योंही, इंदफनिंद . नरिंदा । सुमरन भजन सार है द्यानतं, अवर बात सब फंदा ।। मैं नेमिजीका०॥४॥
(७३) बंदों नेमि उदासी, मद मारवेको।बंदोंगाटेका रजमतिसी तिन नारी छारी, जाय भए बनवासी ॥ बंदों०॥१॥ हयगय रथ पायके सब छांडे, तोरी ममता फांसी । पंच महाव्रत दुर्द्धर पारे १'धंदा' ऐसा भी पाठ है।