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जैनपदसागर प्रथमभाग
तेरा ॥ टेक ॥ तुम सुमरनविन मैं बहु कीना, नानाजोनि बसेरा | भाग- उदय तुम दर्शन पायो, पाप भज्यो तजि खेस ॥ तू जिनवर० ॥ १ ॥ तुम देवाधिदेव परमेश्वर, दीजे दान सवेरा । जो तुम मोख देत नहिं हमको, कहाँ जाँय किंह डेरा ॥ तू जिनवर० ॥ २ ॥ मात तात तू ही वड़ भ्राता, तोसों प्रेम घनेरा । द्यानत तार निकार जगततें, फेर न है भवफेरा ॥ तू जिनवर०॥३॥
७० । राग सोरठ कडखा ।
"रुल्यो चिरकाल, जगजाल चहुंगतिविषै, आज जिनराज तुम सरन आयो । रुल्यो ॥ टेक ॥ सह्यों दुख घोर, नहिं छोर आवै कहत, तुमसों कछु छिप्यो नहिं तुम बतायो ॥ रुल्यो० ॥ १ ॥ तुही संसार-तारक नहीं दूसरो, ऐसो मुहि भेद न किन्ही सुनायो ॥ रुल्यो० ॥ २ ॥ सकल सुर "असुर नरनाथ वंदत चरनं, नाभिनंदन निपुन सुनिन ध्यायो || रुल्यो० ॥ ३ ॥ तुही अरहंत भगवंत गुणवंत प्रभु, खुले मुझ भाग अब दरश