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हजूरी पद-संग्रह । .. ७५ घरी। भूधर कहै यह टेव रहो थिर, जनमः जनम हमरी ।। नैननिको० ॥३॥ . :
___ द्यानतरायकृत पद। .
. (६८)
• अब हम नेमिजीकी सरन । अब० ॥ टेक ॥
और ठोर न मन लगत है, छाडि प्रभुके चरन । अव०॥१॥ सकल भवि-अध-दहन-वारिद, विरद तारन तरन । इंद चंद फनिंद ध्यावे, पाय सुख, दुखहरन ॥ अव० ॥ २ ॥ भरम तमहरतरनिदीपति, करमगन छयकरन । गणघरादि सुरादि जाके, गुन सकेत नहिं वरन । अब० ॥३॥जा समान त्रिलोकमैं हम, सुन्यो अवर न करन । दास द्यानत दयानिधि प्रभु, क्यों तजेंगे परन ? ॥ अव०॥४॥
६९ । राग काफी। तूजिनवर स्वामी मेरा, मैं सेवक प्रभु हों १ भव्य जीवोंके अधरूपी अग्निके लिये मेध | २ भ्रमरूपी अंधकारको नाश करनेकेलिये सूर्यके प्रकाशकी समान । ३'कानोंसे। .४ अपना प्रण वा प्रतिज्ञा।