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हजूरी पद - संग्रह 1. (५८)
मोसम कौन कुटिल खल कामी, तुमसमः कलिमल दलन न नामी ॥ टेक ॥ हिंसक झूठ: वाद-मति विचरत, परधन - हर परवनितागामी । लोभितचित्त वित्त नित चाहत, धावत दशदिश करत न खामी ॥ मोसम० ॥ १ ॥ रागी देव बहुत हम जांचे, राचे नहिं, तुम सांचे स्वामी । बांचे श्रुत कामादिक-पोपक, सेये कुगुरु सहित धन धामी || मोसम० ॥ २ ॥ भाग उदयसे मैं. प्रभु पाये, वीतराग तुम अंतरजामी । तुम धुनि सुनि परजयमें परगुण, जाने निजगुणचित विसरामी || मोसम० || ३ || तुमने पशुपक्षी सब तारे, तारे अंजन चोर सुनामी । भागचंद करु णाकूर सुखकर, हरना यह भवसंतति लामी ॥ मोसम० ॥ ४ ॥
कबि भूधरदासकृत पद | ५९ । रागगौरी |
६९.
अजित जिनेश्वर अघहरणं, अघहरणं अश रन शरणं ॥ अजित० ॥ टेक ॥ निरखत नयन