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हजूरी पद-संग्रहः । ६३ ध्यावे, भवसागरसों तार ॥ स्वामी जी०॥६॥
(४८) राग धनाश्री . प्रभु थांको लखि मम चित हरपायो ॥ टेक॥ सुंदर चिंतारतन अमोलक, रंक पुरष जिम पायो । प्रभु थाँको०१॥ निर्मल रूप भयो अब मेरो, भक्ति नदी जल-न्हायो । प्रभु थाँको०॥ २॥ भागचंद अब मम करतलम, अविचल शिवथल आयो ॥ प्रभु०॥३॥
(४९) रागमल्हार । प्रभु म्हाकी सुधि, करुना करि लीजै ॥टेक॥ मेरे इक अवलं-वन तुम ही, अव न विलंब करीजै ॥ प्रभु०॥१॥ अन्य कुदेव तजे सब मैने, तिनत निजगुन छीजै ॥ प्रमु० ॥२॥ भागचंद तुम सरन लियो है, अब निश्चल. पद दीजै.।।. प्रभु ॥३॥
. (५०) राग कहरवा-कलिंगड़ा । • केवलजोति सुजागीजी, जब श्रीजिनवरकै ॥ केवल० ॥ कः ॥ लोकालोकविलोकत