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________________ AA हजूरी प्रभाती पद-संग्रह ११ सिंदूर पूर, रागरोषकाननकों-दावानल जैसो। पारस०. वोधमई प्रातकाल, ताको रवि उदय लाल, मोक्षवधू-कुच-प्रलेप, कुंकुमाम तैसो। पारस० । कुशल-वृक्ष-दल-उलास, इहविधि बहु गुण-निवास, भूधरकी भरहु आस, दीनदासके सो०। पारस० ॥३॥ (१३) रामकली। ऋषभदेव ऋषिदेव सहाई अजित अजित रिपु संभव संभव, अभिनंदन नंदन लवलाई। रिपभ० ॥सुमति सुमति भविपदम-पदम-अलि; देत सुपास सुपास भलाई । चितचकोरचंदा चंदप्रभ, पुहपदंत पुहपनि भजि भाई। ऋषभ० ॥२॥ शीतल शीतल जड़ता नासै, श्रेयान् श्रेयान् जोति जगाई। वासुपूज्य वासव पद पूजे, विमल विमल कीरति जग छाई। ऋषभ० ॥३॥गुन अनंत अघ अंत अनंत है, धरम- धरम बरसा बरसाई। शांति शांत कुंवादि जंतुपर, कुंथुनाथ ...१ रागद्वेपरूपी बनकेलिये। - - - -
SR No.010373
Book TitleJainpad Sagar 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPannalal Baklival
PublisherBharatiya Jain Siddhant Prakashini Sanstha
Publication Year
Total Pages213
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
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