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· गुरुस्तुतिपद-संग्रह। १५५ ॥ सम-आराम० ॥३॥ निज शुद्धोपयोगरस चाखत, परममता न लगारी । निज सरधान ज्ञानचरणात्मक,निश्चयशिवमगचारी॥ भागचंद ऐसे श्रीयति प्रति, फिर फिर ढोक हमारी सम: आराम०॥५॥
१३) राग-सोरठ मल्हारमें। गिरिवनवासी मुनिराज, मनवसिया म्हारै हो । गिरि०ाटेका। कारन विन उपगारी जगके, तारन तरन जिहाज ॥ गिरिवन०॥ १॥ जनम जरामृत-गद-गंजनको, करत-विवेक-इलाज ॥ गिरिवन०॥२॥ एकाकी जिम रहत केशरी, निरभय स्वगुन समाज गिरिवन० ॥३॥ निभूपन निर्वसन निराकुल, सजि रत्नत्रय साज ।। गिरिवन०॥४॥ ध्यानाध्ययनमाहिं तत्पर नित, भागचंद शिवकाज ॥ गिरिवन०॥५॥
१४ । राग-कलिंगडा . ऐसे साधु सुगुरु कब मिलि हैं ।ऐसे०॥टेको आप तरै अरु परंकों तारे, निष्प्रेही निरमल हैं