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________________ गुरुस्तुतिपद-संग्रह । १५३ सुहाई || शांति० ॥ १ ॥ तपरथपै आरूढ अनूपम, धर्म सुमंगलदाई || शांति० ॥ २ ॥ शिवरमनीको पाणिगहन कर, ज्ञानानंद उपाई ॥ शांति० ॥ ३ ॥ भागचंद ऐसे वैनराको, हाथ जोरि शिरनाई || शांति० ॥४॥ १० । राग खमाच । ज्ञानी मुनि हैं ऐसे स्वामी गुनरास ॥ ज्ञानी० ॥ टेक ॥ जिनके शैल नगर मंदिर पुनि, गिरि कंदर सुखवास ॥ ज्ञानी० ||१|| निःकलंक परयेक शिला पुनि, दीपमृगांके-उजास || ज्ञानी० ॥ २ ॥ मृग किंकर करुणा वनिता पुनि, शील सलिल तप ग्रास ॥ ज्ञानी० ॥ ३ ॥ भागचंद ते हैं गुरु हमरे, तिनहीके हम दास ॥ ज्ञानी ॥ ४ ॥ ११ । राग- समाच श्रीगुरु हैं उपगारी ऐसे, वीतराग गुनधारी वे | श्री गुरु० ॥ टेक ॥ स्वानुभूति - रमनी सँग कीड़े, ज्ञानसंपदा भारी बे ॥ श्रीगुरु ० ॥ १ ॥ १ दुलहाको । २ चंद्रमाका उजाला । ३ खेलें ।
SR No.010373
Book TitleJainpad Sagar 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPannalal Baklival
PublisherBharatiya Jain Siddhant Prakashini Sanstha
Publication Year
Total Pages213
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
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