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जिनवाणीस्तुतिपद-संग्रह। . १४५
(३०) जब वानी खिरी महावीरकी तव,आनंद भयो अपार हो। सव मानी मन ऊपजी हो, धिकधिक यह संसार । जव० टेक ।। बहुतनि समकित आदरयो हो, श्रावक भये अनेक । घर तजिके बहु बन गये हो, हिरदै धरयो विवेक जव०॥१ केई भावै भावना हो, केई गहें तप घोर । केई जर्षे प्रभु नामको, भाजै कर्म कठोर ॥ जव॥२॥ बहुतक तप करि शिव गये हो, वहुत गये सुरलोय । धानत तो वानी सदा हो, जयवंती जग होय। जव०॥३॥