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.: . हजूरी पद-संग्रह। साइयां हो ॥ करमुंदा ॥१॥ कबहुंक इदं नरिंद बनायो, कबहुंक रंक बनाइयां.। कबहुंककीट गयंद रचायो, ऐसे नाच नचाइयां। करमूंदा०॥ ॥जो कुछ भई सो तुमही जानो, मैं जानत हूंनाइयां । कर्मवध तुम काटे जाविधि, सो विधि मोहि दिवाइयां । करमूंदा॥३॥
इति हजूरीपद-संग्रह समाप्त ॥ २॥