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जैनपदसागर प्रथमभाग
बाँधे विधिनंदे | इनकी कृपातें अब मिटि जैहैं, विपदाके सब फेद || आनंद० ||२|| केवल खेत सुभग सुछतापर, वारों कोटिक चंद । चरनकमल बुधजन उर भीतर, ध्यावै शिवसुखकंद || आनंद० ॥ ३ ॥
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१५३ । राग - ईमन जल्द विताको । : शरन गही मैं तेरी, जग-जीवन जिनराज जग पति ॥ शरन०॥ टेक ॥ तारनतरन करन पावन लग, हरन करम-भवफेरी ॥ शरन || १|| ढूंढत फिरयो भरचो नानादुख, कहूं न मिली सुखसेरी यातें तजी आनकी सेवा, सेव रावरी हेरी ॥ शरन ॥ २ ॥ परमैं मगन विसारचो आतम, घरचो भरम जगकेरी | ये मति तजूं भजूं परमातम, सो बुधि की मेरी ॥३॥
१५४ | पंजाबी भाषामें ।
- करमूंदों कुपेंच मेरे है दुखदाइयां हो ॥ टेक ॥ करम हरन महिमा सुन आयो, सुनिए मैंडी
१ कर्मवंद । २ कर्मोका । ३. मेरी ।