________________
११५ जैनपदसागर प्रथमभागम्हारी ॥२॥ थकित भयो.हूंगति गति फिरता, दर्शन पायो आज । बारंवार वीनवै बुधजन; सरन गहेकी लाज ।। म्हारी०॥३॥....
..१३८ । राग-सोरठ। ' बेगि सुधि लीज्यो म्हारी, श्रीजिनराज ॥ ब्रेगि०॥ टेक ॥ डरपावत नित आपु रहत है, संग लग्या जमराज०॥ वेगि०॥१॥ जाके सुरनर नारक तिरजग, सव भोजनके साज। ऐसो काल हरयो तुम साहब, यात मेरी लाज़ ।। बेगि०॥२॥ परघर डोलत उदर भरनको, होत प्राततै सांज । डूवत आश अथाह जल धिम, यो समभाव जिहाज़: ।। वेगि०॥ धनादिनाको दुखी. दयानिधि, अवसर पायो आज। बुधजन सेवक ठाडो विनवै,कीज्यों मेरा-काज ॥ ब्रेगिः ॥४॥ ..
...(.१३९). : श्राका गुन गास्यांजी ज़िनज़ीराजथांका दर सनतें अघ नास्या ॥ थांकाः ॥टेक ॥ था सां: