________________
- हजूरी पद-संग्रहः .. ११३ सुरनर मुनि मिलि पूजन आवे, निरखतं ननड़ो गजेछ। तीनकाल उपदेश होत है, भवि बुधजन हित काजै छै॥ छवि०॥३॥
१३६ । राग-गारों कानरो। शांका गुण गास्यांजी आदिजिनंदा यांका० वाटक । वचन सुण्या प्रभु मून, म्हारा निजगुण भास्यांजी॥ आदि०॥१॥ म्हांका सुमन-कमलमें निसदिन,यांका चरन वसास्यांजीआदि० ॥२॥ याही मूने लगन लगी छ, सुख द्यो दुःख नसास्यांजी। आदि।। बुधजन हरख हिये अधिकाई, शिवपुरवासा पास्यांजी ॥ आदि०॥ ' . १३७ । राग-सोरठ।।
म्हारी कोन सुने, थे तो सुन ल्यो श्रीजिनराज .म्हारी॥टेका अवर सरव मतलब गाहक, म्हारो सरत न काज।मोसे दीन अनाथ रंकको, तुम बनत इलाजः ।.म्हारी० ॥१॥ निजपर नेकु दिखात. नाहीं, मिथ्यातिमिर समाज । चंद्र प्रभू परकाश करोउर, पाऊं धाम.निजाज॥