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हजूरी-पद-संग्रह।
(१२५.) राग-आसावरी मांश ताल:-धीमो एकतालो। प्रभूजी अरज़ म्हारी उरघरो॥प्रभूजी॥१॥ प्रभूजी नरकनिगोद्यां मैं रुल्यो,पायोदुःख अपार ॥ प्रभूजी०॥१॥ प्रभूजी हूं पशुगतिमैं उपज्यो, पीठ सह्यो अति भारः ॥प्रभूजी०॥२॥प्रभूजी विषयमगनमैं सुर भयो, जात न जान्यो काल । प्रभूजी०॥३॥ प्रभूजी नरभव कुल श्रावक लह्यो, आयो तुम दरबार॥ प्रभूजी०॥४॥ भवभरमन बुधजनतनों, मेटो करि उपगार ॥ प्रभूजी०
., (१२६) राग सारंगकी मांझ-चाल दीपचन्दी। म्हारी सुणज्यो दीनदयालु,तुमसों अरज करूं ॥म्हारी०॥ टेक ॥ आन उपाव नहीं या जगमें, जगतारक जिनराज, ते पाय पलं ॥म्हारी ॥शा सार्थ अनादिलांग विधि मेरी, करत रहत बेहाल ।इनकों कोलों भरों.॥म्हारी०॥२॥करि