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जैनपदसागर प्रथमभाग
॥ टेक ॥ निकसे घर आरतिकूप तुम पद-परशनको ॥ हम० ॥ १ ॥ वैननिसों सुगुन निरूप, चाहें दर्शन को || हम० ॥२॥ द्यानत ध्यावें मन रूप, आनंद वरसनको ॥ हम० ॥ ३ ॥
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तुम तार करुना धार स्वामी आदिदेव निरंजनो ॥ तुम० ॥ टेक ॥ सार जग आधार नामी, भविकजनमनरंजनो ॥ तुमं० ॥ १ ॥ निराकार जमी अकामी, अमल देह अमंजनो ॥ तुम० ॥ २ ॥ करहु द्यांनत मुकतिगामी, 'सकलं भवभयभंजनो ॥ तुम० ॥ ३ ॥ PACL * (१०२)
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1. इक अरज सुनो साहिब मेरी ॥ इक० ॥ टेक ॥ चेतन एक बहुत जड घेरचों, दई आपदा “बहुतेरीं ॥ इकः ॥ १ ॥ हम तुम एक दोन इन कीने, विनकारन बेरी गेरी ॥ इकः ॥ २ ॥ द्यानत तुम तिहुं जंगके राजा, करो ज कछु "करुणा नेरी ॥ इक० ॥ ३ ॥
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