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हजूरीपद-संग्रह । ।
(९८) - स्वामी श्रीजिन नाभिकुमार ! हमको क्यों न उतारो पार ॥ स्वामी० ॥टेक॥ मंगल मूरत है अविकार, नामभ® भजै विघन अपार । स्वामी० ॥१॥ भवभयभंजन महिमासार, तीनलोक जिय तारनहार ॥ स्वामी० ॥२॥द्यानत आए शरन तुम्हार, तुमको है सब शरम हमार ॥ स्वामी० ॥३॥
(९९) नेमजी तो केवलज्ञानी, ताहीकों मैं ध्याऊ ।। ॥नेमिजी० ॥ टेक । अमल अखंडित चेतनमंडित, परम पदारथ पाऊं । नेमिजी० ॥१॥ अचल अवाधितं निज गुण छाजत, वचनन कैसे बताऊं। नेमिजी०॥२॥ द्यानत ध्याइए शिवपुर जाइए, बहुरि न जगमैं आऊं। नेमिजी०॥३॥.
(१००) हम आए हैं जिनभूप ! तेरे दरशनको। हम