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________________ __ हजूरी पद-संग्रह । .. .. ९३ तनकसी मोविषै। तुमही होउ सहाय हो ॥ श्रीजिनदातातें बदूं जग गुरू, वंदो दीन दयाल हो । वंदों खामी लोकके, बंदूं भविजनपाल हो ॥ श्रीजिन० ॥७॥ विनती कीनी भावसों, रोम रोम हरपाय हो । या संसार असारमैं, द्यानत भक्ति उपाय हो ॥८॥ : . ९५। राग सोरठ। ' जिनराय! मोहि भरोसो भारी। जिन०॥टेक॥ सुरनरनाथ विभूति देहु तो, अब नहिं लागत प्यारी । जिन० ॥१॥ सिरीपाल भूपाल विथा गई, लहि संपति अधिकारी । सूली सेठ अगनि तँ सीता, कहा भयो जो उबारी । जिन ॥२॥ विदित रूपखुर तस्कर : तुमतें, भए अमर अवतारी। भविसुदच अर सालभद्रकी, किंहकारण रिघ सारी ॥ जिनराय० ॥३॥ भेक श्वान गज़ सिंह भए सुरं, विषयरीति. विस्तारी। कृष्णपिता मुंत बहुरिधिपाई, विनाशीक तुम धारी । जिनं १। रूप छिपानेवाला अंजन चोर । २. मेंडकर.३ प्रद्युम्न । . 1M
SR No.010373
Book TitleJainpad Sagar 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPannalal Baklival
PublisherBharatiya Jain Siddhant Prakashini Sanstha
Publication Year
Total Pages213
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
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