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________________ • हजूरी पद-संग्रह। पिछानकै सुरपति कीनी सेव । कामदेव जिन चक्रवर्तिपद,-तीन भोगि खयमेव । अपनो०॥१॥ तीन कल्यानक हथिनापुरमैं, गरम जनम तप भेव । दशदिशा दशधर्म-प्रकाश्यो, नाश्यो अघतम एव ॥ अपनो ॥२॥ सहस अठो तर नाम सुलच्छन, अच्छ विना सुख बेव। द्यानत दास आस प्रभु तेरी,नास जनम मृत टेव।। अपनो ॥३॥ (९३) हे जिनरायजी, मोहि दुखते लेहु छुडाय ॥ टेक ॥ तनदुख मनदुख खजनदुख, धनदुख कह्यो न जाय॥हे जिनरायजी० ॥ १ ॥ इष्ट वियोग अनिष्ट समागम, रोग सोग बहु भाय। गरभ जनम-मृत बाल-विरध-दुख, भोगे धरि धरि काय ॥ हेजिनरायजी० ॥२॥ नरक निगोद अनंती विरियां, करि करि विषय कषाय पंचपरावर्तन बहु कीने, तुम जानो जिनराय॥ ॥ हे जिन० ॥३॥ भवबन-भ्रमतम, दुखदव जम
SR No.010373
Book TitleJainpad Sagar 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPannalal Baklival
PublisherBharatiya Jain Siddhant Prakashini Sanstha
Publication Year
Total Pages213
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
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