SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 30
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ बाल जैनेन्द्र था और बन्दर नाम रखने की वजह यह थी कि बन्दर के नाम से पुकारे जाने पर यह जो ॐ ॐ की आवाज निकालते थे वह बिलकुल बन्दर से मिलती-जुलती होती थी। मामा की बन्दर की आवाज पर यह इतने लागू थे कि सोते हुये भी जाग पड़ते थे। और इसकी वजह यह थी कि तब इन्हें या तो कुछ खाने खेलने की चीज मिलती थी और ऐसा न हुआ तो गोदी में कुछ दूर टहलने का मौका तो मिलता ही था । मामा भी इनको अजब ढंग के मिले थे जो रात को दो बजे भी इन्हें जगाकर गोदी में टहलाने ले जाते थे । इस सब प्यार का एक नतीजा और हुआ। एक मरतबा इनकी माँ की रजाई पर कोयले की एक चिन्गारी गिर पड़ी थी, और उसमें इतना सुराख हो गया था जिसमें बाल-जैनेन्द्र की अंगुली जा सकती थी। बस अब इनका यह हाल था कि जैसे ही बन्दर अावाज सुनी और इन्होंने अपनी अंगुली रजाई के उस सुराख में इसलिये डाली कि उसे बड़ा करके मामा को देख। पर उससे तो उल्टा सुराख बन्द हो जाता था और फिर यह जोर लगाते थे । और इस तरह सुराख यहाँ तक बड़ा कर दिया गया कि यह बन्दर की आवाज सुनकर फौरन ही जाग जाते थे और कोशिश करके बड़ी तेजी से अपना सिर उसमें होकर निकाल लेते थे और तब ऊ ऊ कहते थे, क्योंकि यह मनबहलाव का खेल बन गया था, इसलिये रजाई के उस सुराख की मरम्मत नहीं की जाती थी। कुछ दिनों बाद जैनेन्द्र कुमार अपनी सूझबूझ से काम लेने लगे । मामा के साथ रहने के यह बड़े शौकीन थे, इसलिए जब मामा खाने बैठते थे, तो यह उनके जतों पर जा बैठते थे, वह इस दूरनदेशी से कि मामा जब बाहर जायेंगे तो जूते पहनेंगे ही और बस फिर हम उनके साथ हो लेंगे । पर जब मामा को यह पता चला तो उन्हें एक दिन इन्हें धोखा देने की सूझी और वह जूता पहने बगैर दूसरे रास्ते से चल दिए । जब काफी से ज्यादा देर हो गई तब बाल-जैनेन्द्र तलाश करते हुए अन्दर आये और लगे अपनी माँ से पूछने कि मामा कहां हैं ? बस यह जवाब सुनकर कि मामा तो बड़ी देर से चले गये, वे माँ और मामी पर पिल पड़े कि उन्हें यह सब क्यों नहीं बताया गया । खैर उन्होंने तो माफी माँगकर समझा-बुझाकर उनसे पीछा छुड़ाया, पर मामा से जो यह रूठे तो तभी मने जब उन्होंने यह कह दिया कि अब वह वैसा नहीं करेंगे और उन्होंने अपना वचन निभाया। बाल-जैनेन्द्र ने कहीं किसी से सुन लिया या शायद सीधे किसी ने उनसे यह कह दिया कि रुपया बो देने से उग जाता है, उसका पेड़ खड़ा हो जाता है और उसमें रुपये लगते हैं । बस अब क्या था, बड़ी बहन की गुल्लक खोल उसमें से एक रुपया निकाला और बाहर किसी पेड़ के नीचे बो आये । उसे कुछ दिनों पानी भी देते रहे । होनहार की बात कि कुछ ही दिनों बाद उनके मामा वहाँ से चल दिये और
SR No.010371
Book TitleJainendra Vyaktitva aur Krutitva
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSatyaprakash Milind
PublisherSurya Prakashan Delhi
Publication Year1963
Total Pages275
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size22 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy