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जैनेन्द्र : व्यक्तित्व और कृतित्व किन्तु प्रश्न है कि रुपये रहते हुए भी मोहिनी अर्थात् 'विवतं' की नायिका 'विवर्त' के नायक को रुपये क्यों नहीं देती ? और विवर्त-उपसंहार में वह रुपये देती है जितेन अर्थात् विवर्त-शासन सूत्रधार के हो कारण ! क्या वह 'गोदान' की मालती की तरह बर्बर प्रेम की प्राकांक्षिणी है ? ।
__त्यागपत्र' की मृणाल समाज के तथाकथित निम्नवर्ग के निष्ठापूर्वक कल्याण की प्रार्थिनी है । वह नरक कुण्ड को स्वर्ग बनाने की आकांक्षा करती है । वह इस क्षेत्र में रुपये की स्वस्थ और उचित उपयोगिता समझती है, किन्तु रुपया ही सब कुछ है, ऐसा स्वीकार वह नहीं करती। "विवर्त' ऐसा स्वीकार करता है।
'व्यतीत' जीवन का स्वस्थ दर्शन नहीं उपस्थित करता। 'व्यतीत' में जीवन का जीवनोचित निर्माण अथवा जीवनोचित प्रतिपादन, अंकन और विश्लेषण नहीं है। 'व्यतीत' मौलिक नकारात्मक से परिपूर्ण है-नकारात्मक उपन्यास है। 'व्यतीत' की विशेषता जीवन में जीवन के लिए नहीं है, यह बहुत बड़ा एक 'नहीं' है । 'व्यतीत' जीवन के प्रति विरोधात्मक प्रतिक्रिया ही अभिव्यक्त करता है। व्यतीतमार्गी दर्शन जीवन के प्रति पीठ दिखलाता है। 'व्यतीत' जीवन के प्रति दायित्व-बोध नहीं व्यक्त करता। 'व्यतीत' में जीवनपरक दायित्व विमुखता है, जीवन-निष्ठा से परिपूर्ण कर्तव्यवाद की आत्मघाती अवहेलना ।
कह चुका हूँ कि जैनेन्द्र चिन्तन के चित्रकार है। व्यतीत-स्थलों पर भी यत्रतत्र जैनेन्द्र-चिन्तन के जीवित चित्र अवश्य मिल जाते हैं । जैसे,
'कुछ होता है जिसमें हम नहीं होते। सिर्फ वह होता हमसे है। उस पर से प्रादमी को परखना भ्रम है।"
जयन्त 'व्यतीत' उपन्यास का नायक है । अनिता 'व्यतीत' की नायिका है।
जयन्त के शब्दों में, "नहीं ही तो बना बैठा हूँ। कुछ हाँ की तलाश करनी पड़ेगी।"
सच पूछा जाय तो जयन्त एक नहींवादी पात्र है। हाँ की सार्थकता उसके जीवन में नहीं है। हाँ की तलाश की उसकी इच्छा वाकई हाँ की तलाश नहीं हैनारी के हां से भागने की प्रक्रिया है । जयन्त ने जीवन के हाँ को ठकराया है । जीवन का हां जयन्त ने नहीं कहा । व्यतीत-संयोजन में हां की जीवन-सार्थकता नहीं है। जयंत का नहींमार्गी जीवन हाँवाद की प्रतिक्रिया है, हावाद अथवा हाँ का पूरक नहीं। हाँ के क्षेत्र से मुह मोड़कर हामार्गी चिन्तन का अभिनय जीवन के नहींवाद की ही परिपुष्टता है-अर्थात् जीवनपरक हाँ के विरुद्ध सेना का घनत्व है । जयन्त में जीवन पक नींवाद है और प्रनिता में जीवनपरक हो की सार्थकता ।