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जैमेrद्र : व्यक्तित्व और कृतित्व
श्रर्थात् यह सरकार पर कृपा हुई कि तथाकथित क्रान्तिकारीगण सरकारी छाप के पैसे का व्यवहार और उपयोग करते हैं । विवर्त-पुरुष बना-बनाया रुपया लूटने और सरकार के टूटने में सामंजस्य, समभाव और एकत्व स्थापित कर रहा था, किन्तु अब वह सरकार को सुदृढ़ करने का तथ्य-निरूपण कर रहा है । यह सब क्या है ? क्रान्तिकारी के पास कम-से-कम स्वस्थ और सुलझा हुआ क्रान्ति-दर्शन तो अवश्य रहना चाहिए । जितेन द्वारा क्रान्ति का मार्ग- चिन्तन है
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"पैसे के बग़ैर हमारा काम हो सकता है ? या पैसा हो सकता है, जो हमारा हो, सरकार का न भी हो? हमारा सिक्का, हमारी साख क्रान्ति वह है । तमंचा तोप तोप न चले । "
" असल
का सामना न कर पाएगा । चलेगा वह जिसके श्रागे
किन्तु रुपये लूटकर जितेन क्या धन को ईश्वर नहीं बनाना चाहता ? उसने तो स्वयं कहा है- "धन लूटकर सिवा इसके क्या होता है कि धन ईश्वर बनता है ।' तब धन को ईश्वर बनाने से लाभ ?
जितेन के अनुसार, "सिक्के के हाथ नहीं, श्रम के हाथ सत्ता होनी चाहिए । दाम सिक्का हो और सिक्का मिट्टी हो, तब है क्रान्ति । बाकी तमाशा है, बाकी सब सरकार की पूजा है " क्रान्ति कहते हैं, पर करते पूजा हैं ।
यही एक भाव और विचार-स्थल है, जहाँ पर मैं जितेन का साथ दूँगा । किन्तु जितेन का यह श्रम-सिद्धान्त केवल शब्द - निरूपण में सीमित है, कार्यान्वयन में नहीं । कार्य के रूप में यह सिद्धान्त 'विवर्त' में अनुवादित नहीं हो पाता । सुनीतावरिणत हरिप्रसन्न श्रम सिद्धान्त और श्रीकान्त श्रम-सिद्धान्त के आलोक में जितेन के दाम-सिद्धांत का अध्ययन श्रौर मूल्यांकन अनिवार्य है ।
'विवर्त' का क्रान्तिवाद क्रान्ति नहीं, समाज को दुर्घटनाग्रस्त रेलगाड़ी की स्थिति में लाने का कुकृत्य है ।
भुवन मोहिनी जितेन के प्रति अपने प्रच्छन्न वासनात्मक प्यार के कारण व्यक्ति के रूप में अपना समष्टि प्रादर्श विस्मृत कर देती है । व्यष्टि- कोमलता की अवैध रक्षा के लिए भुवनमोहिनी का समष्टि - विस्मरण नारी- मापदंड के समुचित प्रदर्श का स्खलन है ।
मोहिनी को यदि जितेन के तथाकथित क्रान्तिवाद में विश्वास नहीं है, सा वह जितेन के प्रति अनावश्यक रूप से सदय क्यों है ?
अपहृता मोहिनी के प्रति जितेन का दुर्व्यवहार 'व्यतीत' में चन्द्रकला के प्रति जयन्त के दुर्व्यवहार के समकक्ष है ।